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पहला ख़त

 गुलबहार, में शहर दिल्ली में खैरियत से हूँ। उम्मीद है, कि वहां बनारस में भी सब खैरियत से होंगे। आपको यह जान कर शायद थोड़ी हैरत हो लेकिन यह मेरी जिंदगी का पहला खत है, जो आपको मुखातिब कर रहा हूँ। यकीनन यह आपके किरदार की ही ताकत है, जिसने मुझे खत लिखने की हिम्मत अता की है। साहित्य की और लगाव और उल्फ़त यकीनन आपके किरदार की मोजूदा शक्ल का वायज़ मालुम होता है। आपसे मिलने के बाद मेरे किरदार और अदब की समझ में इजाफा हुआ है, आपके जरिए और भी अदब से जुड़े लोगों से मुलाकात करने मौका मिला, और आज यह पहला खत भी लिख दिया गया। यकीनन आप की मोजूदगी से मेरे किरदार में बढ़ोतरी हुई है। मेट्रो में आती हुई हल्की हल्की हवा आपके बालों को उड़ाकर आपको और भी ख़ूबसूरत बना रही थी। जैसे ही लाजपत नगर स्टेशन मेट्रो पहुंची, और आपने गले लगाने का इशारा किया, मुझे लगा कि शायद थोड़ा और वक्त होता तो अच्छा होता। तो फिर ख्याल आया कि ख़त लिखकर ही इस वक्त के कम होने की भरपाई कुछ हद तक की जा सकेगी। पता नहीं यह मुकम्मल ख़त है या नहीं, इस बात का यकीन है कि इसके और भी ख़त लिखूंगा और आप ही से प्रूफरीड करवाऊंगा।  अभी के लिए अपनी बा...

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हम नाराज़ हैं तो हैं।

मेरी फितरत है हसीनों से परहेज़ करना।

में लिहाज़ हूँ, अक्सर देर से आया करता हुँ।

मोहब्बत हम करते, तो सीने लेट कर करते।

तुझसे मोहब्बत करें या रहने दें।

चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन हमारे जैब को अब हाजत-ए-रफ़ू क्या है|