हम नाराज़ हैं तो हैं।
जम्हूरियत है, ग़र हम आज़ाद हैं तो हैं।
मक़सद है कि, सभी चुभा करें तुम्हें,
तंज़ पसंद, हमारे ख़यालात हैं तो हैं।
ख़ामोश रहो, तुम्हें मसला क्या है,
मेरी जाँ, ग़र हम नाराज़ हैं तो हैं।
अब चाहे तु इन्हें निभाए चाहे रहने दे,
वादे सारे तेरे, ग़र हमें याद हैं तो हैं।
कश्ती भँवर में उलझती जा रही है,
यारा डरें क्यूँ, यह भी हालात हैं तो हैं।
Beautifully written...keep up the good work...
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