Shayri's Archive

   कोशिश

जब भी आपको लिखने की कोशिश करता हुँ,
जैसे समुन्दर की लेहरो को रोकने की कोशिश करता हुँ


मुक़ाम वह है के उफ़ कहना भी है गुनाह,
बेवक़ूफ़ हूँ, चंद अशआरों में समेटने की कोशिश करता हुँ

है असर वोह के रेगिस्तां से भी ज़म-ज़म निकले,
क्यूँ नहीं में इन दुआओं को बटोरने की कोशिश करता हुँ 

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