मेरी फितरत है हसीनों से परहेज़ करना।

गलतफहमी है यह तुम्हें, इश्क नहीं है किसी मुझे,
मजबूरी है, शायर हूँ, मुझे इश्क लिखना पड़ता हैं।

लड़ाई, बहस, नाराजगी, सब मोहब्बत का हिस्सा
रिश्ता कायम रहता है, बस थोड़ा सा झुकना पड़ता है।

वेसे तो मेरी फितरत है हसीनों से परहेज़ करना,
तुमसा खूबसूरत हो कोई, फिर तो पिघलना पड़ता है।

Comments

Popular Posts