Satyagraha
अकेले तुम शुरू तो करो इंक़लाब
मगर याद रखो,
जो अपने हैं उन साथियों से तुम
अटूट इत्तेहाद रखो
दुश्मन के पास भी दिल है
पिघलेगा ज़रूर,
सब्र से खड़े रहो अपने ऐके
में विश्वास रखो
ख़ामोशियाँ चीख़ें, शहर भी
अपना रुके नही,
रगों में उबलता ख़ून हो,
वाणी पर एहत्यात रखो।
बंद कानों को चीर के पहुँचे
बुलंद इतनी अपनी आवाज़ रखो।
अकेले तुम शुरू तो करो इंक़लाब
मगर याद रखो।
सत्य पर अटल रहो, अडिग रहो,
आग्रह अपना हत्यार रखो।
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