तुम अपनी कहो ?

यह 11 जनवरी 2018 और वक्त तकरीबन 12 बजे था।  में कॉलेज के पास पार्क में बैठा सोच रहा था कि अंग्रेजी ज़बान में एक कहानी लिखुं लेकिन समझ नहीं आ रहा था। कि अंग्रेजी बूढी हो रही पीली घांस को क्या कहते हैं।  तोह ज़हन में ख्याल आया की सौम्या को कॉल करके पूँछ लूँ,  ख्याल आता भी क्यूं  नहीं, आख़िरकार इतनी बेहतरीन Poetry और अंग्रेज़ी ज़बान का इस्तेमाल क्लास में कोई कर भी नहीं सकता था। मगर फिर लगा कि  पता नहीं क्या वह क्या सोचेगी, इसी कश्मकश में मेने कॉल नहीं किया।

खैर, ज़िन्दगी की लड़ाई लड़ती हुई, अपने हरे रंग को खोती हुई घांस हवा में लहरा रही थी।  में वहीँ ज़मीन पर बैठा था और इस घास को पास देखते हुए लिखने की कोशिश कर रहा था। लेकिन ऐसे में ध्यान लगाना बहुत मुश्किल होता जा रहा था। जैसे ही कोई अच्छा ख्याल आता, पीछे से सामने वाली फैक्ट्री के जनरेटर की आवाज़, अपने आप मैं खुश होती, हंसती हुई लड़कियां, अपने ख्यालो की अतरंगी बाते करते हुए लड़के, स्वच्छ भारत का गान सुनाती हुई गाडी और ना जाने कितनी ही अनजान आवाज़ें मुझे परेशान कर रही थी।

धुप और हवा की इस लड़ाई में कभी सर्दी, कभी गर्मी लग रही थी की तभी मेरा नज़र घांस के टूटे हुए तिनको पर गयी। इन टूटे हुए तिनको, पेड़ से गिरते हुए पत्तों, एक तरफ खराब पढ़ी हुई वह गाड़ी जो अब कबाड़ बन चुकी थी, अपना रंग छोड़ता हुआ पुराना  होर्डिंग और अपनी ख़त्म होती हुई स्याही के बावजूद मेरा साथ देता हुआ यह कलम जैसे मुझसे पूछ रहें हो,

हमने तोह अपनी ज़िदगी का मक़सद पूरा कर लिया।  तुम अपनी कहो ?

- बारी खान                     

Comments

  1. Writing skills. PiereciPthe soul bro. Keep going. Keep sharing..

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  3. Wowww..... Superb yr.

    You wrote as a writter.
    Good luck bro.

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